जी7 सम्मेलन से पहले ट्रंप का बड़ा बयान: “मध्य पूर्व संकट के कारण वापस लौटेंगे”

कनाडा के रॉकी पर्वतों में चल रहे जी7 शिखर सम्मेलन में जब दुनिया के सात प्रमुख लोकतांत्रिक नेता बैठक कर रहे थे, तभी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक और चौंकाने वाला कदम उठाया। सम्मेलन की शुरुआत से पहले ही उन्होंने ऐलान किया कि वह एक दिन पहले कनाडा दौरा छोड़कर अमेरिका लौटेंगे। ट्रंप ने अपनी वापसी की वजह “मध्य पूर्व में जो कुछ चल रहा है” बताई, लेकिन वास्तविक कारण ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव से जुड़ा हुआ था।

ट्रंप की वापसी और आधिकारिक बयान

व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलाइन लेविट ने सोमवार शाम को कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप वाशिंगटन जल्दी लौट रहे हैं ताकि वह “कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान दे सकें।” हालांकि, इसे आधिकारिक तौर पर ‘मध्य पूर्व की स्थिति’ के संदर्भ में बताया गया, लेकिन इसके पीछे की असली वजह ईरान-इजरायल तनाव और अमेरिकी कूटनीति की सक्रियता मानी जा रही है।

ईरान पर ट्रंप का कड़ा रुख

सम्मेलन से पहले ट्रंप ने सोशल मीडिया पर ईरान की राजधानी तेहरान के लोगों को “तुरंत शहर खाली करने” की चेतावनी दी थी। हालांकि, उन्होंने इसका कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया, लेकिन इस पोस्ट को ईरान पर दबाव बनाने की रणनीति के रूप में देखा गया। ट्रंप के इस कदम ने दुनिया भर में हलचल मचाई और यह स्पष्ट किया कि वह ईरान के साथ अपने संबंधों को लेकर किसी भी प्रकार की नरमी बरतने के मूड में नहीं हैं।

जी7 सम्मेलन में ट्रंप का विवादित रुख

जब जी7 सम्मेलन की शुरुआत हुई, तो यूरोपीय देशों के नेता, जैसे फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, जर्मनी के चांसलर एंजेला मर्केल और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने एक साझा बयान पर सहमति बनाने का प्रयास किया। इस बयान में ईरान को परमाणु हथियार हासिल न करने देने और इजरायल के आत्मरक्षा अधिकार को मान्यता देने की बात थी। हालांकि, ट्रंप ने इस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया और कहा कि वह पहले ही इस मुद्दे पर सार्वजनिक बयान दे चुके हैं, इसलिए उन्हें साझा घोषणापत्र पर हस्ताक्षर की आवश्यकता नहीं है।

ईरान से कूटनीतिक समझौते की संभावना

जी7 सम्मेलन के दौरान ट्रंप ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि वह ईरान से जल्द एक कूटनीतिक समझौता कर सकते हैं। उन्होंने कहा, “ईरान बातचीत करना चाहता है… हम कुछ करने जा रहे हैं।” हालांकि, उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि वह कौन से कदम उठाएंगे। यह संकेत है कि ट्रंप ईरान के साथ बातचीत के रास्ते को फिर से खोलने का इरादा रखते हैं, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने इजरायल के खिलाफ किसी भी प्रकार की आक्रामकता को भी गंभीरता से लिया है।

इजरायल पर हमला और अमेरिकी रुख

इस बीच, ईरान पर दबाव बनाने के उद्देश्य से इजरायल ने ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर हमले किए थे, जो कि ट्रंप के बयान के साथ मेल खाता है। शुक्रवार को, जब ट्रंप का दो महीने का अल्टीमेटम खत्म हुआ, तब इजरायल ने ईरान के परमाणु सुविधाओं और सैन्य अधिकारियों पर अब तक के सबसे बड़े हमले किए। ट्रंप ने इसे एक सख्त कदम बताया, जो उनके द्वारा निर्धारित कूटनीतिक दबाव का हिस्सा था।

रूस पर विवाद

सम्मेलन के दौरान ट्रंप ने रूस को लेकर भी अपनी पुरानी स्थिति को दोहराया। उन्होंने कहा कि रूस को 11 साल पहले जी8 से बाहर करना एक गलती थी और अगर रूस अब भी उसमें शामिल होता, तो शायद यूक्रेन युद्ध नहीं होता। इस पर फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने विरोध जताया और कहा कि जो देश संयुक्त राष्ट्र के चार्टर का उल्लंघन कर रहे हों, वे मध्य पूर्व में शांति के दूत नहीं बन सकते।

निष्कर्ष

ट्रंप का जी7 सम्मेलन से पहले सम्मेलन में अपना रुख साफ करना और फिर मध्य पूर्व की स्थिति का हवाला देते हुए सम्मेलन से बाहर लौटना, यह दर्शाता है कि वह बहुपक्षीय संवाद से अधिक एकतरफा फैसलों में विश्वास रखते हैं। उनकी यह रणनीति वैश्विक सहयोग के लिए चुनौती पेश कर रही है, और इससे सम्मेलन के पहले ही दिन राजनीतिक तनाव की रेखा खींची गई है। अब देखना यह होगा कि क्या ट्रंप अपनी कूटनीतिक चालों से अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी रणनीति को और प्रभावी बना पाते हैं।

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