अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 2025: दिल्ली को ‘स्वस्थ राजधानी’ बनाने की दिशा में योग बना जन आंदोलन

दिल्ली को 'स्वस्थ राजधानी' बनाने की दिशा में योग बना जन आंदोलन

नई दिल्ली, 21 जून 2025:
आज जब दुनिया अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मना रही है, तब दिल्ली जैसे महानगर में योग एक नए जन आंदोलन का रूप ले चुका है। मानसिक तनाव, जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां और सामाजिक असंतुलन जैसे संकटों के बीच योग एक ऐसा समाधान बनकर उभरा है, जो न केवल शरीर को स्वस्थ करता है, बल्कि मन और आत्मा को भी संतुलित करता है।


आधुनिक समय की चुनौतियों में योग का महत्व

आज का युग असंतुलन और अव्यवस्था से भरा हुआ है। इंसान के पास सुविधाएं तो हैं, लेकिन संतोष नहीं। भागदौड़ भरे जीवन में मानसिक शांति की भारी कमी है। ऐसे समय में योग न केवल एक शारीरिक व्यायाम है, बल्कि एक समग्र जीवनशैली है जो मानसिक शांति, भावनात्मक स्थिरता और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।


योग: भारत की सांस्कृतिक विरासत और वैश्विक पहचान

2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा में योग दिवस का प्रस्ताव रखा गया था, जिसे 177 देशों का समर्थन मिला। यह भारत की सांस्कृतिक शक्ति और ‘सॉफ्ट पावर’ का परिचायक था। योग अब केवल भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह समस्त मानवता की साझी विरासत बन चुका है।

आज अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका, जापान समेत सैकड़ों देशों में योग का अभ्यास हो रहा है। योग भारतीय ज्ञान परंपरा की वह सांस्कृतिक मुद्रा बन चुका है जो भारत को ‘विश्वगुरु’ की भूमिका में स्थापित कर रहा है।


दिल्ली में योग को दिनचर्या का हिस्सा बनाने की पहल

रेखा गुप्ता, एक सामाजिक कार्यकर्ता और विचारक के रूप में, दिल्ली को “स्वस्थ राजधानी” बनाने के लिए योग को जनसाधारण की दिनचर्या का हिस्सा बनाने पर जोर दे रही हैं। उनका कहना है कि योग को घरों के आंगन से लेकर सरकारी कार्यालयों तक पहुंचाया जाना चाहिए।

उनका यह प्रयास है कि योग किसी वर्ग या समुदाय तक सीमित न रहकर सभी नागरिकों के जीवन में प्रवेश करे। दिल्ली जैसे विविधता से भरे महानगर में योग एक भावनात्मक सेतु बन सकता है, जो समाज को जोड़ने का काम करे।


डिजिटल युग में भी प्रासंगिक योग

मोदी सरकार ने योग को केवल उत्सव नहीं, बल्कि नीति और व्यवहार का अंग बनाया है। mYoga ऐप, योग लोकेटर और WHO की साझेदारी जैसे डिजिटल टूल्स ने योग को आधुनिक तकनीक के साथ जोड़कर और अधिक सुलभ बनाया है।

स्कूलों से लेकर सैनिकों, कारागारों से लेकर कार्यालयों तक, हर स्तर पर योग को बढ़ावा देने की दिशा में काम हो रहा है। आज योग सिखाने वाले हजारों संगठन, आश्रम और संस्थान इसे जन-जन तक पहुंचा रहे हैं।


योग: आत्मा का अनुशासन

जहां पश्चिमी सभ्यता ‘I think, therefore I am’ पर आधारित रही है, वहीं भारतीय दर्शन योग को कर्म और आत्म-अनुशासन का आधार मानता है – ‘योगः कर्मसु कौशलम्’। यह जीवन के हर पहलू में संतुलन और दक्षता लाने का माध्यम है।

योग न तो किसी धर्म से जुड़ा है और न ही किसी जाति या वर्ग से। यह एक सार्वभौमिक विज्ञान है, जो शरीर, मन और आत्मा को एकीकृत करता है। यही योग की ताकत है, जिसे आज पूरी दुनिया पहचान रही है।


‘वन अर्थ, वन हेल्थ’ की ओर भारत का कदम

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दिया गया संदेश “One Earth, One Health” आज के संदर्भ में और भी अधिक प्रासंगिक है। यह भारत की आध्यात्मिक सोच का वैश्विक रूपांतरण है। योग इसी विचार का प्रमुख स्तंभ है।


निष्कर्ष:

योग कोई कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक सतत प्रक्रिया है जो मनुष्य को अपने भीतर झांकने और संतुलन पाने की शक्ति देती है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 2025 इस बात की याद दिलाता है कि योग को अपनाकर न केवल व्यक्ति, बल्कि पूरी दिल्ली को ‘स्वस्थ राजधानी’ में बदला जा सकता है।

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