नरेला का नाम बदलकर विंध्याचल करने की डीडीए की योजना का विरोध तेज हो गया है। स्थानीय लोग और इतिहासकार इसे गुरु तेग बहादुर से जुड़ा ऐतिहासिक स्थान बता रहे हैं।
नरेला का नाम बदलने की योजना पर विवाद, लोगों ने जताई नाराजगी
दिल्ली के उत्तर-पश्चिमी इलाके नरेला को लेकर इन दिनों बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) की ओर से इस क्षेत्र का नाम बदलकर ‘विंध्याचल’ करने की योजना बनाई जा रही है। लेकिन इस फैसले का स्थानीय लोगों ने जोरदार विरोध किया है। उनका कहना है कि नरेला सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक इतिहास और पहचान है, जिसे बदला नहीं जाना चाहिए।
गुरु तेग बहादुर से जुड़ा है नरेला का ऐतिहासिक संबंध
प्रसिद्ध इतिहासकार विक्रमजीत सिंह रूपराय के अनुसार, नरेला का इतिहास 16वीं सदी से जुड़ा है। उन्होंने बताया कि नरेला को लक्खी शाह बंजारा ने बसाया था, जो उस समय के एक प्रतिष्ठित व्यापारी और सामाजिक नेता थे। लक्खी शाह ने दिल्ली के चार प्रमुख स्थानों को बसाने में भूमिका निभाई — रायसीना (आज का राष्ट्रपति भवन), नरेला, बाराखंबा और मालचा।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब मुगल शासक औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर जी को शहीद करवाया और किसी को उनके अंतिम संस्कार की अनुमति नहीं दी, तब लक्खी शाह ने उनकी चुपचाप शव को अपने घर में रखकर आग लगाई और उनका अंतिम संस्कार किया। यह घटना नरेला को धार्मिक और ऐतिहासिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाती है।
स्वतंत्रता के बाद चार प्रमुख कस्बों में एक था नरेला
इतिहासकार रूपराय बताते हैं कि स्वतंत्रता के बाद दिल्ली के चार प्रमुख कस्बे बनाए गए थे — महरौली, नजफगढ़, शाहदरा और नरेला। इसका मतलब है कि नरेला का केवल ऐतिहासिक ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक महत्व भी रहा है।
स्थानीय लोग क्यों कर रहे हैं विरोध?
नरेला के स्थानीय बाजार चेयरमैन हेमराज, युवक नेता राजेंद्र और कई अन्य निवासियों का कहना है कि नाम बदलने से स्थानीय पहचान खत्म हो जाएगी। उनका मानना है कि यदि सरकार विकास करना चाहती है, तो इसमें किसी को आपत्ति नहीं है, लेकिन इसके लिए नाम बदलना जरूरी नहीं है।
स्थानीय निवासी कहते हैं:
“आप चाहे नरेला को कितना भी स्मार्ट बना दो, लेकिन इसका नाम हमारी आत्मा से जुड़ा है। हम इसे बदलने नहीं देंगे।”
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
नरेला में कई ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल मौजूद हैं, जिनमें प्रमुख है:
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मां मनसा देवी का प्राचीन मंदिर
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मुगल कालीन तालाब
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गुरुद्वारा लक्खी शाह वंजारा (संबंधित स्थल)
इन धरोहरों को संरक्षित करने की बजाय, नाम बदलना लोगों को अस्वीकार्य लग रहा है।
सरकार की मंशा और लोगों की मांग
डीडीए की योजना के पीछे मंशा यह है कि नरेला को एक नई पहचान दी जाए और विकास की दृष्टि से ब्रांडिंग की जाए। लेकिन स्थानीय लोग और इतिहासकार स्पष्ट कह रहे हैं कि पहचान केवल नाम से नहीं, बल्कि संस्कार, संस्कृति और इतिहास से होती है।
निष्कर्ष
नरेला का नाम बदलने की योजना ने एक सामाजिक और भावनात्मक बहस को जन्म दिया है। जहां सरकार इसे विकास के लिए जरूरी कदम बता रही है, वहीं स्थानीय लोग और इतिहासकार इसे इतिहास और आस्था पर चोट बता रहे हैं। फिलहाल यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार जनता की भावनाओं का सम्मान करती है या अपने फैसले पर अडिग रहती है।